إن يسألوك ِ عني :
كيف غابت من فمه ِ الأغاني ؟!
كيف آب من عطر ِ الغواني ؟!
كيف تاب عن سحر ِ المعاني ؟!
أو يسألوك ِ عن غيابي
أين كان َ ؟!
كيف أفل َ النجم ُ ؟!
كيف توارى خلف نورك ِ
حين بان َ ؟!
أو عاتبوك ِ فيني
كيف أضحى أميرُ الملاح
لـ هواك ِ عبدا ً ؟!
كيف له ُ أن أستجدى رضاك ِ ؟!
كيف بات فيه ذاك ؟!
كيف تناهى فيك ِ
واستكان َ ؟!
قولي لهم :
قد كان يقتفي عطر الملاح
و ذات يوم ٍ رآك ِ
فـ تاه في عينيك ِ لِـ لحظة
و قضى العمر فيها معتكفا
لِـ يشيد ُ في سحرها الأوطانا ..
عبد الرزاق دخين .